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आचार्य श्रीराम शर्मा >> व्यक्तित्व परिष्कार की साधना

व्यक्तित्व परिष्कार की साधना

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15536
आईएसबीएन :0

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नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन

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परम पू० गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की जीवन यात्रा


जन्म- आश्विन कृष्ण त्रयोदशी संवत् १९६८ (२०-९-११ ई०) ग्राम आँवलखेड़ा, जनपद आगरा (उ० प्र०) में एक जमींदार ब्राह्मण परिवार में। 

बालकाल से ही अध्यात्म साधना व चर्चा में गहरी रुचि।

दस वर्ष की आयु में बनारस में पं० महामना मदन मोहन मालवीय जी द्वारा गायत्री मंत्र की दीक्षा व यज्ञोपवीत!

पंद्रह वर्ष की आयु में गुरुसत्ता से साक्षात्कार, उनके निर्देश पर अखण्ड दीपक प्रज्वलित कर चौबीस वर्ष तक चलने वाले २४-२४ लक्ष के चौबीस गायत्री महापुरश्चरणों की शृंखला प्रारंभ। साधनाकाल में गाय को खिलाए और गोबर से छानकर निकाले गए संस्कारित जौ की रोटी व छाछ पर रहे। कुण्डलिनी तथा पंचाग्नि विद्या की साधना इस बीच पूरी हुई।

किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में सक्रिय, तीन बार जेल यात्रा। मालवीय जी, रफी अहमद किदवई, श्रीमती स्वरूपरानी नेहरु (जवाहरलालजी की माता), देवीदास गाँधी के साथ आसनसोल जेल में। सविनय अवज्ञा आदोलन में सरकार के उत्पीड़न के बावजूद घर की कुर्की होने के बाद भी आजादी की लगन। राजनीतिक गुरु-महात्मा गाँधी। मार्गदर्शन लेने साबरमती आश्रम की कई बार यात्रा।

"अखण्ड-ज्योति" पत्रिका का पहले फ्रीगंज आगरा फिर १९४० की वसंत पंचमी से "अखण्ड-ज्योति संस्थान" मथुरा से प्रकाशन। अध्यात्म तत्वदर्शन का शास्रोक्त एवं विज्ञान-सम्मत प्रतिपादन, अखण्ड-ज्योति पत्रिका ५४ वर्ष पूरे कर रही है।

वंदनीया माता जी भगवती देवी का १९४३ में उनके जीवन में प्रवेश। गुरुदेव की उग्र तपश्चर्या में उनका पूर्ण योगदान। नारी जागरण कार्यक्रम का वंदनीया माताजी द्वारा सफल संचालन। गुरुदेव के साथ दो शरीर एक प्राण के रूप में सक्रिय।

चार बार अपने गुरु श्री सर्वेश्वरानन्दजी के निर्देश पर हिमालय की यात्रा। प्रत्येक बार ६ माह से लेकर १ वर्ष तक अज्ञातवास में कठोर तप-साधना। उक्त अवधि में माताजी द्वारा कार्य संचालन।

चौबीस महापुरश्चरणों की समाप्ति पर ११५३ में महर्षि दुर्वासा की तपस्थली में मथुरा-वृन्दावन मार्ग पर गायत्री तपोभूमि की स्थापना। अखण्ड-अग्नि प्रज्वलित। १०८ कुण्डीय गायत्री महायज्ञ के साथ गुरु दीक्षा देने का क्रम आरंभ।

१९५८ में एक विशाल सहस्रकुण्डीय गायत्री यज्ञ मथुरा में संपन्न, जिसमें चार लाख से अधिक गायत्री साधकों ने भाग लिया। गायत्री परिवार का संगठन इसके बाद बना।

गायत्री महाविद्या पर बृहद् विश्वकोष स्तर का तीन खण्डों में गायत्री महाविज्ञान प्रकाशित

अपने तीसरे अज्ञातवास से लौटकर १९६० में चारों वेदों 'का सरल सुबोध भाष्य, १०८ उपनिषदों का भाष्य, २० स्मृतियों का हिन्दी रूपान्तर, १८ पुराणों का पुनरुद्धार, संस्करण तथा षट्दर्शन का भाष्य प्रकाशित किया।

युग निर्माण योजना का उद्‌घोष १९६३ में शतसूत्री योजना की घोषणा एवं राष्ट्रव्यापी समाज निर्माण के कार्यक्रम का सफल क्रियान्वयन। सारे देश में गायत्री यज्ञों की श्रृंखला का संचालन। देव-दक्षिणा में लाखों व्यक्तियों के दुर्व्यसन छुड़ाकर उन्हें दिव्य-जीवन की ओर मोड़ा।

धर्म-अध्यात्म गायत्री महाविद्या, जीवन जीने की कला, समग्र आरोग्य, व्यक्ति-परिवार-समाज निर्माण तथा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर तीन हजार से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तकों का लेखन व प्रकाशन

युग निर्माण योजना एवं युगशक्ति गायत्री पत्रिका (दस विभिन्न भाषाओं में) का लेखन, सम्पादन एवं प्रकाशन।

६० वर्ष की आयु में २० जून १९७१ को मथुरा छोड़कर एक वर्ष हिमालय में उग्र तपश्चर्या हेतु प्रस्थान। धर्मपत्नी वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा द्वारा शान्तिकुब्ज हरिद्वार में आरम्भ किये गये शक्ति केन्द्र का संचालन।

१९७२ की गायत्री जयन्ती के बाद से शांतिकुञ्ज में दुर्गम हिमालय में कार्यरत ऋषियों की परम्परा का बीजारोपण कर उसे एक सिद्ध पीठ के रूप मेँ विकसित किया।

 

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    अनुक्रम

  1. नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
  2. निर्धारित साधनाओं के स्वरूप और क्रम
  3. आत्मबोध की साधना
  4. तीर्थ चेतना में अवगाहन
  5. जप और ध्यान
  6. प्रात: प्रणाम
  7. त्रिकाल संध्या के तीन ध्यान
  8. दैनिक यज्ञ
  9. आसन, मुद्रा, बन्ध
  10. विशिष्ट प्राणायाम
  11. तत्त्व बोध साधना
  12. गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ
  13. गायत्री उपासना का विधि-विधान
  14. परम पू० गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की जीवन यात्रा

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